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भोजन केवल पेट भरने का साधन नहीं है

भारतीय वैदिक ज्ञान कहता है: जो भोजन प्राणहीन है, वह शरीर में सिर्फ रोग भरता है


भारत, वेदों और शास्त्रों की पवित्र भूमि है। यहाँ का ज्ञान केवल किताबों में बंद नहीं है, बल्कि हमारी दिनचर्या, खानपान और जीवनशैली में गहराई से जुड़ा हुआ है। हमारे ऋषि-मुनियों ने हज़ारों साल पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि "जैसा अन्न, वैसा मन और जैसा मन, वैसा तन"।


भोजन केवल पेट भरने का साधन नहीं है — यह शरीर, मन और आत्मा का पोषण करता है। वैदिक परंपरा हमें सिखाती है कि भोजन एक ऊर्जा है, जो हमें स्वस्थ भी बना सकती है और बीमार भी। लेकिन आज, आधुनिक युग में हम इस गहरे ज्ञान को भूलते जा रहे हैं। फास्ट फूड, प्रोसेस्ड फूड और मांसाहार हमारी थालियों में जगह बना चुके हैं, जबकि ये सब प्राणहीन भोजन हैं — यानी ऐसा भोजन जिसमें जीवन शक्ति नहीं होती। और जो भोजन जीवन शक्ति से खाली है, वह शरीर में सिर्फ रोगों का घर बनाता है।


तो आइए समझते हैं, वैदिक नजरिए से प्राणहीन भोजन क्या है और यह हमारे तन-मन पर कैसे असर डालता है।



क्या है प्राणहीन भोजन?


वेदों और शास्त्रों के अनुसार, हर भोजन में एक सूक्ष्म ऊर्जा होती है, जिसे प्राण कहा जाता है। यह वही जीवन शक्ति है जो सूर्य की किरणों, हवा और पानी से पौधों और जीवों में समाहित होती है।


लेकिन, जब भोजन अपनी प्राकृतिक अवस्था खो देता है, तो उसमें से प्राण खत्म हो जाते हैं। ऐसे भोजन को प्राणहीन भोजन कहा जाता है। इसके उदाहरण हैं:


मांसाहार (माँस, मछली, अंडा) — ये सभी पहले से मृत होते हैं, और मरने के बाद उनमें से प्राण पूरी तरह समाप्त हो जाते हैं। मृत शरीर केवल सड़ता है, वह जीवन ऊर्जा नहीं दे सकता।


प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड — महीनों तक पैकेट में बंद रहने वाला भोजन चाहे कितना भी स्वादिष्ट लगे, लेकिन उसमें जीवन शक्ति नहीं होती। इसमें सिर्फ रसायन और परिरक्षक (preservatives) भरे होते हैं।


बासी और बार-बार गर्म किया हुआ खाना — वैदिक परंपरा में बासी भोजन निषिद्ध है, क्योंकि जैसे ही भोजन ठंडा होता है, उसमें प्राण घटने लगते हैं। माइक्रोवेव में दोबारा गर्म करने से यह पूरी तरह खत्म हो जाता है।


तामसिक भोजन — जिसमें शराब, नशा, अधिक मिर्च-मसाले और तला-भुना खाना शामिल है। यह मन और शरीर को भारी कर देता है।


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जब आप ये प्राणहीन भोजन खाते हैं, तो यह आपके शरीर में जाकर अमा (toxins) बनाता है। यह अमा धीरे-धीरे शरीर के कोनों में इकट्ठा होकर मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मोटापा, जोड़ों का दर्द और हार्मोनल असंतुलन जैसी बीमारियाँ पैदा करता है।



वैदिक दृष्टि: जैसा अन्न, वैसा मन


वेदों के अनुसार, भोजन केवल तन का पोषण नहीं करता, बल्कि मन को भी प्रभावित करता है। आपके विचार, निर्णय और भावनाएँ भोजन पर आधारित होती हैं। इसलिए भारतीय संस्कृति में भोजन को तीन श्रेणियों में बांटा गया है:


1. सात्विक भोजन


ताजा फल, हरी सब्जियाँ, अंकुरित अनाज, शुद्ध घी, शहद, सूखे मेवे


यह भोजन मन में शांति, सकारात्मकता और आनंद भरता है।


इसीलिए नवरात्रि जैसे पर्वों पर सात्विक भोजन किया जाता है ताकि तन और मन दोनों पवित्र बने रहें


2. राजसिक भोजन


तीखा, खट्टा, अधिक मसालेदार, तला-भुना खाना


यह मन में क्रोध, अधीरता और बेचैनी लाता है।


यही कारण है कि योग और ध्यान करने वालों को राजसिक भोजन से बचने की सलाह दी जाती है।


3. तामसिक भोजन


माँसाहार, शराब, बासी भोजन, प्रोसेस्ड फूड


यह मन को भारी, उदास और नकारात्मक बनाता है।


वैदिक ग्रंथ कहते हैं कि तामसिक भोजन व्यक्ति के आत्मज्ञान को कुंद कर देता है और नकारात्मक भावनाओं को बढ़ाता है।



तो जैसा अन्न खाओगे, वैसा ही मन बनेगा। जब आप प्राणहीन भोजन खाते हैं, तो आपके विचारों में आलस्य, चिड़चिड़ापन और नकारात्मकता आ जाती है। वहीं, जब आप सात्विक भोजन खाते हैं, तो मन शांत और स्थिर रहता है, जिससे सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।



पर्व और त्योहार: सात्विक भोजन का महत्त्व


हमारे ऋषि-मुनियों ने त्योहारों और उपवासों का भी एक गहरा रहस्य छुपा रखा है। नवरात्रि, एकादशी, करवा चौथ जैसे उपवास केवल धार्मिक क्रियाएँ नहीं हैं — ये हमारे शरीर को डिटॉक्स करने का एक साधन हैं।


नवरात्रि के दिनों में सात्विक भोजन किया जाता है — जैसे फल, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, और हरी सब्जियाँ। यह शरीर को साफ करता है और ऊर्जा को पुनः जागृत करता है।


एकादशी का व्रत करने से शरीर को 15 दिन में एक बार विषैले तत्वों से मुक्त करने का मौका मिलता है।


गुरुवार का व्रत शुद्ध आहार और मन की शांति के लिए किया जाता है।



त्योहारों का असली उद्देश्य तन और मन को सात्विक भोजन के जरिए पुनः संतुलित करना है।


स्वास्थ्य की ओर पहला कदम: सात्विक जीवनशैली अपनाएँ


अगर आप इस वैदिक जीवनशैली की ओर लौटना चाहते हैं, तो योग साधना केंद्र रजि. मलेरकोटला आपका मार्गदर्शन करने के लिए तैयार है।


हम आपके शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा और योगिक जीवनशैली का इस्तेमाल करते हैं। हमारे यहाँ उपलब्ध सेवाएँ:


व्यक्तिगत डाइट प्लान — सामान्य स्वास्थ्य के लिए या Disease Reversal के लिए (मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा आदि)।


योग सत्र और ध्यान शिविर — शरीर और मन को संतुलित करने के लिए।


प्राकृतिक चिकित्सा — एक्यूप्रेशर, नेचुरोपैथी और आयुर्वेदिक उपचार।


डिटॉक्स वर्कशॉप और आयुर्वेदिक शिविर — शरीर को गहराई से शुद्ध करने के लिए।



आपका भोजन ही आपका भविष्य तय करता है। तो आज ही सात्विक, प्राणयुक्त भोजन अपनाएँ और स्वस्थ जीवन की ओर बढ़ें!


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शुद्ध भोजन, शुद्ध मन, और शुद्ध जीवन — यही वैदिक रहस्य है।



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